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Showing posts from June, 2016

Sangraam !!

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सेहरा में खोयी थी धरती प्यासी रोई थी कोहराम ये हरगाम हुआ माँ तेरा क्या अंजाम हुआ ? लपट चली थी सरपट सरपट प्यास भुझि न पनघट पनघट आँचल तेरा बेजान हुआ माँ तेरा क्या अंजाम हुआ ? व्यथित हुआ है जीवन सारा निज मंथन में पथिक भी हरा सावन क्यों अंजान हुआ माँ ऐसा क्या संग्राम हुआ ??

विडम्बना !!

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अजब मंजर है , देख दुनिया बनाने वाले तेरे दर पे खड़ा हूँ , मैँ और मुझको सताने वाले ! किस से उम्मीद लगाए , अब नदिया पार लगने वाले खुद ही डूब रहे , जब कश्तियाँ बनाने वाले !! किस तरफ जाएं , वो मुसाफिर कहलाने वाले राह खो बैठे है , सब राह दिखने वाले !! अलफ़ाज़ न दे ज़ख्मों को , ऐ ग़ज़ल सुनाने वाले जख्म - कारी करते है, सब ज़माने वाले !!