विडम्बना !!

अजब मंजर है, देख दुनिया बनाने वाले
तेरे दर पे खड़ा हूँ, मैँ और मुझको सताने वाले !

किस से उम्मीद लगाए, अब नदिया पार लगने वाले
खुद ही डूब रहे, जब कश्तियाँ बनाने वाले !!

किस तरफ जाएं, वो मुसाफिर कहलाने वाले
राह खो बैठे है , सब राह दिखने वाले !!

अलफ़ाज़ न दे ज़ख्मों को , ऐ ग़ज़ल सुनाने वाले
जख्म-कारी करते है, सब ज़माने वाले !!

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