गाँधी से बड़े गाँधी : लाल बहादुर शास्त्री
किस्सा तब का है जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने ही थे | पहली पत्रकार वार्ता में उन्हे इशारों ही इशारों में समकालिक धुरंधर पत्रकारों ने बता दिया कि नेहरू जी की छवि इस कुर्सी पर उनके मरने के बाद भी बनी रहेगी और शास्त्री जी को नेहरू जी की बनायी नीति से ही चलना पड़ेगा |

वे स्वाभिमानी थे, उन्होने अपना निवास बदलने का आदेश दे दिया | यहा से शुरू हुई शास्त्री जी और इंदिरा जी का शीतयुद्ध तसखेत( उस समय USSR) में जाकर खतम हुआ जहा शास्त्री जी ने अंतिम साँस ली |
अपनी सीधी साधी छवि की वजह से शायद उन्हें लोगो ने कमजोर प्रधानमंत्री मान लिया था | शायद यही भूल पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने कर ली थी | और नतीजा ये हुआ की लाहौर को बचाने के लिए उन्हें यूनाइटेड नेशन की शरण में जाना पड़ा और अमेरिका और रूस के हस्तछेप क बाद युद्द विराम हुआ | जय जवान जय किसान का नैरा बुलंद करके उन्होंने भारत में स्वेत क्रांति और हरित क्रांति की नीव रखीं जिसका अमूल रस आज घर घर में है |
कहते हैं बड़े पेड़ के नीचे कोई नया पेड़ पनप नहीं पता | शास्त्री जी के साथ यही हुआ | वे गाँधी की छाया से निकल नहीं पाए | परंतु वे गाँधी से भी बड़े गाँधी थे | महात्मा गांधी जीवन के सफर में जैसे बढ़ रहे थे वैसे ही अपनी नीतियों से खुद ही विरोधाभास करने लगे थे | गाँधी को सादगी और गरीबी में रखने के लिए अमीरों जैसा पैसा खर्च होता था |
शास्त्री का समय आया तो गाँधी जी एक मानक बन चुके थे | ऐसे में गाँधी के जन्मदिन को साझा करना एक बड़े पेड़ के नीचे नया पेड़ लगाना ही तो हुआ | विडंबना यह रही कि गांधी जी ने जिन मूल्यों की सबसे ज्यादा वकालत की, उनका पालन किसी व्यक्ति ने उनसे ज्यादा ईमानदारी से किया | शास्त्री जी ने गांधी को सादगी और शुचिता का जीवन जीनें में अन्य शिष्यों की तरह शर्मिंदा नही किया , बल्कि गुरु को मात दे दी |
महान लाल बहादुर शास्त्री को उनके जन्म दिवस पर नमन ||
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