माँ तो अखिर माँ होती है!
Mothers day पर विशेष : मेरी आपबीती
बात सितंबर 2018 की है , मैं एक प्रोजेक्ट हार गया था, कुछ लोगों की गलतियों की वजह से, मात्र 15 लाख के अन्तर से 5crore का प्रोजेक्ट मेरे हाथ से चला गया | मुझसे ये हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी, मेरी 6 महीने की मेहनत व्यर्थ हो गयी, मेरे उपर कंपनी में इल्ज़ाम लग रहे थे, और मुझे निष्कासित करने की बातें उठने लगी थी |
एक दिन बर्दाश्त से बाहर होने पर, मैं बिना किसी को बताये ऋषिकेश निकल गया | ऑफिस के बाद बस पकडी और सुबह ऋषिकेश पहुँचा वहाँ से activa किराये पर लेकर निकल पड़ा NH58 पर | सोचा नहीं था कहा तक जाना है, बस चले जा रहा था ऑफिस से दूर, शांति की तलाश में | 70km चलने के बाद देवप्रयाग मे रुका और संगम पर आकर एक विशाल पत्थर पर दोनों तरफ पैर लटका कर बैठा, एक पैर मेरा भागीरथी में था और एक पैर अलकनंदा में | ठंडे पानी का वेग शरीर को शान्त कर रहा था | लहरों की आवाज मन को चिन्तामुक्त कर रहीं थीं | 4 बज गए थे और मैं सूरज डूबने का इंतजार कर रहा था कि सहसा पीछे से आयी एक आवाज ने मेरी ध्यानमुद्रा को भंग किया |
"बेटा वहाँ मत बैठो, खतरा है"
"जाकर अपना काम करो, मुझे अकेला छोड़ दो" गुस्से से मैंने कहा
"नदी की धार तेज है, बह जाओगे तो पता नहीं चलेगा"
पीछे से फिर आवाज आयी, मेरा ध्यान टूट चुका था जिससे चिड़चिड़ाहट हो रही थी
"नहीं होगा कुछ, अब जाओ यहां से, मेरा दिमाग मत खराब करो, पहले ही गरम है बहुत "
किसी तरह गुस्से को शान्त करके कहा और नदी के तेज बहाव का ठंडा पानी हाथ से उठाया और मुह पर लगाया |
" मेरा बेटा बह गया था, आजतक नहीं लौटा"
पीछे से फिर आवाज आयी, लेकिन इस बार थोड़ी दुःखी रुदन
भरी थी |
ये सुनकर मेरे पैरों के नीचे से जैसे पानी सूख गया हो, दोनों नदियाँ मानो रुक गयी हो, मैं एकदम सिहर गया, धड़कन थोड़ी तेज हुई और मैने पलट कर देखा, एक बुढ़ी दादी शायद 60-65 साल की होंगी, मुझे देख रहीं थीं |
मैंने अपने आप को सम्भाला और नदी के बीच से उठा और उनके पास आया किनारे पर |
बात करते करते पता चला कि उनकी एक ही सन्तान थी और वो लड़का देवप्रयाग में सफाई कर्मचारी था, और 2013 की उत्तराखंड की त्रासदी में वो बह गया था | पर माँ तो माँ है, इस माँ को आज भी उम्मीद है कि शायद वो मिल जाए, इसलिए वो रुद्रप्रयाग से नीचे आकर देवप्रयाग में रहती है और भिक्षा माँगकर गुजारा करती है |इंतजार करती है कि शायद उनका लाडला वापस आ जाए |
अपनी आपबीती सुनाते सुनाते, इनकी आँखे भर आयी थी और मेरा दिल बैठ गया था | उनके साथ काफी देर बैठा, अपनापन लगा, उन्होंने मुझे खुश रहने का आशीर्वाद दिया और सिर पर हाथ फेरा | मेरी परेशानी और मेरा गुस्सा सब नदी के बहाव में बहते दिख रहे थे |
सच कहते है, माँ जैसा कोई नहीं होता |
#mothersday
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